पेरिस में शीतल ने पैरालंपिक में कास्य पदक जीतकर एक नया इतिहास बनाया है, कर्नल शीशपाल सिंह कैन्तुरा की सोच और मेहनत रंग लाई। 

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देहरादून,

 

 पेरिस में आज 17 साल की शीतल ने पैरालंपिक में कास्य पदक जीतकर एक नया इतिहास बनाया है । 

 

शीतल की कामयाबी के पीछे पौड़ी के रहने वाले कर्नल शीशपाल सिंह कैन्तुरा की सोच और मेहनत भी है । कर्नल शीशपाल सिंह कैन्तुरा ने 11 राष्ट्रीय राइफ़ल के कमांडिंग ऑफ़िसर रहते हुए शीतल को जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ के गाँव से निकालकर पेरिस ओलंपिक में पहुँचाने में बड़ा योगदान दिया है। 

 

2019 में भारतीय सेना का एक दल जम्मू कश्मीर के सुदूर किश्तवार जिले के मुग़ल मैदान क्षेत्र में गश्त लगा रहा था ।  इस दौरान मुग़ल मैदान के सरकारी विद्यालय में उनकी नज़र शीतल पर गई , वह बिना हाथों के दोनों पैरों से अपना स्कूल बैग खोलती किताब निकालती और पाँव की उँगलियों से लिख रही थी । इस दिव्यांग कन्या की इस प्रतिभा को देख कर एक अचम्भा सा हुआ और इसके बाद भण्डारकोट स्थित सेना की 11 राष्ट्रीय राइफल्स ने शीतल के परिवार से संपर्क किया जो की लोई धार गाँव में रहते थे ।

 

 

शीतल का गाँव ऊंचाई पर था और नज़दीकी सड़क से एक घंटे की कठिन चढ़ाई के बाद यहाँ पहुंचा जा सकता था ।  इसी रास्ते शीतल रोज़ नीचे उतरकर मुग़ल मैदान में विद्यालय जाती और शाम को वापस आती । शीतल के माता पिता गरीब थे लेकिन उन्होनें शीतल की शारीरिक स्थिति देखकर हार नहीं मानी और अपनी बड़ी बेटी शीतल को विद्यालय भेजा और पढ़ाना लिखाना शुरू किया । 

 

 

सेना द्वारा शीतल को उसकी पढाई लिखाई के लिए मदद शुरू की गई और 11 राष्ट्रीय राइफल्स भारतीय सेना ने कर्नल शीशपाल सिंह कैंतुरा की कमान में मई 2020 में शीतल को गोद लेकर (Adopted Girl) उसको सदभावना की विभिन्न गतिविधियों में शामिल करना शुरू किया ।  शीतल को युवाओं के लिए व दिव्यांग बच्चों के माता पिता के लिए प्रेरणा स्त्रोत के रूप में ख्याति मिलनी शुरू हुई । 

 

 

मई 2021 में पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड के रहने वाले 11 राष्ट्रीय राइफल्स के सी ओ कर्नल कैंतुरा ने  मेघना गिरीश से संपर्क किया और शीतल के लिए कृत्रिम हाथों के लिए सहायता मांगी । मेघना  बहादुर अफसर मेजर अक्षय गिरीश की वीर माता हैं और बेंगलुरू में रहकर अपने पति विंग कमांडर गिरीश कुमार के साथ मिलकर मेजर अक्षय गिरीश मेमोरियल ट्रस्ट नामक स्वयं सेवी संगठन चलाती हैं और देश भर में वीर परिवारों की सेवा कर रही हैं । मेघना ने शीतल के बारे में जानकार तुरंत सी ओ 11 राष्ट्रीय राइफल्स को आश्वासन दिया और मदद के लिए कोशिशें करने लगी ।  इसके बाद मेघना ने प्रसिद्ध अभिनेता अनुपम खेर से संपर्क किया और शीतल के बारे में उन्हें विस्तार से बताया । अनुपम खेर  शीतल के जीवन व उसकी प्रतिभा को सुनकर प्रभावित हुए और उन्होनें आश्वासन दिया की वे शीतल को उसके कृत्रिम हाथ दिलाएंगे ।

 

इसके बाद टेलीफोन पर सी ओ 11 राष्ट्रीय राइफल्स , मेघना गिरीश जी व अनुपम खेर के बीच विचार विमर्श हुआ और शीतल के इलाज का कार्यक्रम तय हुआ। 

सब कुछ तय होने के बाद शीतल व उसके माता पिता को एक सैनिक के साथ बेंगलुरु भेजा गया । बेंगलुरु में मेघना गिरीश  तथा स्वयं सेवी संगठन ‘द बीइंग यू ‘ की प्रीती राय जी ने सारा प्रबंध किया और अस्पताल में शीतल के टेस्ट किये गए और उसको वापस किश्तवार भेजा । फिर दो महीने बाद शीतल अपने माता पिता के साथ बेंगलुरू भेजी और वहां विख्यात डॉक्टर श्रीकांत ने शीतल को कृत्रिम हाथ लगाये । 

 

इस दौरान प्रीती राय ने देखा की शीतल की ताकत उसके पैरों में है और शीतल को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के दिव्यांग खिलाड़ियों से मिलाना शुरू किया ।  शीतल के खेलों की काबिलियत के लिए विभिन्न टेस्ट करवाए गए । 

और यह पाया गया की शीतल में वो क्षमता है की वह पैरा गेम्स कर सकती है । 

 

शीतल को तीरंदाज़ी के लिए उपयुक्त पाया गया । 

इसके बाद कोच कुलदीप बैदवान व अभिलाषा चौधरी ने कड़ी मेहनत करते हुए शीतल को अभ्यास करना शुरू किया । शीतल कोचों के मार्गदर्शन में  माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड कटरा में तीरंदाज़ी का प्रशिक्षण ले रहीं हैं ।  हाल ही में संपन्न हुए एशियाई पैरा गेम्स में शीतल ने कीर्तिमान स्थापित करते हुए 2 स्वर्ण व 1 रजत पदक हासिल किया और देश का ध्वज ऊँचा किया ।  प्रधानमंत्री ने भी शीतल को समान्नित किया और उनकी हौसला अफ़ज़ाई की। 

 

नई बुलंदी हासिल करते हुए अब शीतल 2024 में पैरिस में हो रहे पैरा ओलंपिक्स में दो बार विश्व रिकॉर्ड तोड़ते हुए कांस्य पदक जीत चुकी हैं ।  किश्तवाड़ के गाँव से पेरिस तक के सफ़र में पूरे विश्व में उनके चर्चे हैं।  शीतल केवल 17 वर्ष की हैं और उनका भविष्य उज्जवल है। 

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